
नई दिल्ली उत्तर प्रदेश के बाहुबली विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ के खिलाफ आपराधिक मामले वापस लिए जाने की खबरों के बीच राज्य सरकार ने सफाई पेश की है। राज्य सरकार ने साफ कर दिया है कि रघुराज प्रताप सिंह के खिलाफ कोई मामला वापस नहीं लिया गया है। राजा भैया के खिलाफ हत्या, हत्या का प्रयास, लूट, अपहरण समेत कुल 47 मुकदमे दर्ज हैं। कुछ में उन्हें अदालत से राहत मिल चुकी है। इस बीच खबर यह भी आई थी कि सरकार की ओर से उनके खिलाफ मुकदमे वापस लिए जा चुके हैं। इस बारे में अदालत ने सरकार से सवाल पूछे थे। अदालत ने सरकार से कहा था कि अगर मुकदमे वापस लिए गए हैं तो उसका कारण स्पष्ट किया जाना चाहिए। अदालत ने चेतावनी दी कि यदि उचित सफाई नहीं आती तो वह इस प्रकरण में स्वतः संज्ञान लेगी। अदालत ने यह भी कहा था कि जिस अभियुक्त के खिलाफ कई मुदकमे दर्ज हों उसके खिलाफ उदारतावूर्ण रवैया नहीं अपनाया जा सकता है। सरकार की ओर से मुकदमा वापस लिए जाने संबंधी खबरों के बारे में सफाई पेश करते हुए कहा गया है कि मार्च 2017 में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद से ही रघुराज प्रताप सिंह के खिलाफ कोई केस वापस नहीं लिया गया है। राजा भैया प्रतापगढ की कुंडा विधानसभा सीट से निर्दलीय विधायक हैं। वह अखिलेश यादव मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री थे लेकिन प्रतापगढ़ में पुलिस उपाधीक्षक जियाउल हक की भीड़ द्वारा हत्या किए जाने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। मायावती के राज में जेल साल 2002 में भारतीय जनता पार्टी के विध्याक पूरण सिंह बुंदेला के अपहरण के मामले में राजा भैया को जेल जाना पड़ा। तब मुख्यमंत्री मायावती के आदेश पर उन्हें सुबह चार बजे गिरफ्तार किया गया। बाद में मायावती की उत्तर प्रदेश सरकार ने रघुराज प्रताप सिंह को आतंकवादी घोषित कर दिया। उन पर पोटा लगाया गया। उनके अलावा उनके पिता और कजिन अक्षय प्रताप सिंह पर भी पोटा लगा। अक्षय को जमानत मिल गई लेकिन रघुराज की अपील कई बार खारिज हुई। राजा भैया की बेंती कोठी पर हुई छापेमारी में तालाब से नरकंकाल मिले थे। मार्च 2013 को डीएसपी जिया-उल-हक की कुंडा में पुलिस और ग्रामीण के बीच मुठभेड़ में मौत हो गई। यह राजा भैया का विधानसभा क्षेत्र है। जिया-उल-हक की पत्नी परवीज आजाद की शिकायत पर प्रतापगढ़ पुलिस ने मामले में राजा भैया पर केस दर्ज किया। परवीन का आरोप था कि इस मामले में राजा भैया ने साजिश रची जिसके नतीजे में गैंग वॉर हुई और जिया-उल-हक को अपनी जान गंवानी पड़ी। एफआईआर में परवीन ने आरोप लगाया कि रघुराज के करीबी ने ही पुलिस अधिकारी की हत्या की है। इस मामले में अपना नाम आने पर राजा भैया को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। इस मामले में सीबीआई ने 2013 की फाइनल रिपोर्ट में राजा भैया को क्लीन चिट दी जिस पर परवीन आजाद ने विरोध जताया। इसके बाद स्पेशल सीबीआई मजिस्ट्रेट लखनऊ ने रघुराज प्रताप सिंह और एफआई में दर्ज अन्य लोगों के खिलाफ जांच के आदेश दिए।
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